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Showing posts from October, 2011

एक पुराना दोस्त

एक  पुराने  दोस्त  से  सोच  समझकर  मिलने  गए .. और बातों बातों में युहीं कुछ बातें निकलीं ... कुछ  हल्की फुल्की  बातें  हुईं , अजनबियों  के  बीच  जैसे  होती  हैं . . मौसम   और  दीवारों  की … कुछ  पतझड़  कुछ  फुहारों  की , फिर  आदत  से  मजबूर , वही  पुराना  दस्तूर , उम्मीदों  से  कुछ  सच  भी  कह  डाला , और  फिर  पछताने  का  अपना  अंदाज़  तो  है  ही  निराला .. जो  सब  पता  था  , वो  फिर  से   कुछ  इस  तरह  महसूस  होने  लगा … सच  भी  अजीब  है , थोडा  वक़्त  गुजर  गया  तो  नया  सा  हो  चला ... फिर  लगा  जिनसे  उलझनों  के  रिश्ते  हैं   उनसे  समझ  की  क्यूँ  उम्मीद  कर  बैठे , जिनके  रास्ते  हमसे  अलग  थे , और  ज़िन्दगी  आसान , उन्हें  क्या  समझाएं  और  क्या  समझे .. जिन्होंने  हमसे  न  अपने  दुःख  बाटें  न  ख़ुशी , जो  हमें   हमेशा  दोस्ती  की  दुहाई  दे  देकर  ताने  कसते  रहे  , और  हम  खुद  को  साबित  करने  के  लिए  हर  छोटे  बड़े  किस्से  सुनाते  रहे … जब  एहसास  हुआ  कि  कुछ  रिश्ते  नाम  के  रह  गए  तब  खाली