एक पुराने दोस्त से सोच समझकर मिलने गए .. और बातों बातों में युहीं कुछ बातें निकलीं ... कुछ हल्की फुल्की बातें हुईं , अजनबियों के बीच जैसे होती हैं . . मौसम और दीवारों की … कुछ पतझड़ कुछ फुहारों की , फिर आदत से मजबूर , वही पुराना दस्तूर , उम्मीदों से कुछ सच भी कह डाला , और फिर पछताने का अपना अंदाज़ तो है ही निराला .. जो सब पता था , वो फिर से कुछ इस तरह महसूस होने लगा … सच भी अजीब है , थोडा वक़्त गुजर गया तो नया सा हो चला ... फिर लगा जिनसे उलझनों के रिश्ते हैं ...
An effort to frame overwhelmed phases ,often to thank friends around .. Sometimes to draw lines and sometimes to erase...